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सवालों के घेरे में – भारतीय युवा शक्ति

सियासत
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सवालों के घेरे में  भारतीय युवा शक्ति
सरकारी आँकड़ों की माने तो भारत की कुल जनसंख्या का ५० फ़ीसीदी हिस्सा २५ वर्ष से कम आयु वर्ग का है और ६५ फ़ीसीदी जनसंख्या ३५ वर्ष से कम आयु वर्ग की है, यानी हम हमारे इस देश को युवा भारत कहे तो कुछ भी ग़लत नही है. अब गंभीर सवाल यह है कि हमारी युवा शक्ति की सही और संपूर्ण तस्वीर क्या है, कैसी होनी चाहिए और ख़ासतौर से भारत जैसे विकासशील देश में इसके क्या मायने हैं ? एक शक्तिशाली युवा शक्ति को घर से लेकर परिवार, समुदाय से लेकर समाज और क्षेत्र से लेकर देश तक अपनी प्रगति विकास और निर्माण की अहम ज़िम्मेदारी की बागडोर देना चाहता है और यह स्वाभाविक भी है क्योंकि युवा अवस्था एक परिपक्व व्यक्तित्व के पूर्ण होने का प्रतिबिंब है और व्यक्ति और रास्ट्र के निर्माण क्रम में महत्वपूर्ण पड़ाव. एक और बात, सफल और शक्तिशाली युवा व्यक्तित्व के निर्माण कार्य में विभिन्न किरदार अलग अलग भूमिका निभाते हैं, जैसे शिक्षण संस्थाएँ, सामाजिक रूप रेखा, धर्म संस्कृति कला और बाहरी देश दुनिया में होने वाली गतिविधियों से परिचय.परिपक्वता से मेरा अभिप्राय है एक ऐसी युवा शक्ति जो शारीरिक और मानसिक स्तर पर संतुलित भी है और सर्जनात्मक भी.
लेकिन वर्तमान भारतीय युवा शक्ति की तस्वीर कुछ और ही बयान करती है, और गिने चुने कुछ सफल नाम जिनका परिचय मीडीया या अख़बारों के माध्यम से किया जाता है उनका किसी भी प्रकार से पूरी युवा शक्ति का प्रतिनिधित्व करने पर थोपा जाना असंगत है, आख़िरकार सवाल भारत के ६५ फ़ीसीदी युवा वर्ग की छवि से जुड़ा है ना कि  देश के ११ क्रिकेट खेलते खिलाड़ियों के परिचित नामों से, ना ही बोलीवूड और टॅलेंट हंट में रोजाना चित परिचित अंदाज में  थिरकते कलाकारों से, और ना ही हर शहर के हर सेक्टर के बाज़ारों में ५-६ का समूह बनाकर खड़े वयस्क और भ्रमित नौजवानों से जो अख़बार भी खोलते हैं तो सिर्फ़ रंगीन पेज पर आए फिल्मी कलाकारों के लिए. यह मेरी अतिवादी सोच नही है लेकिन लगता है कि  इस उभरते युवा वर्ग को जानबूझकर किसी सर्जनात्मक प्रक्रिया से जोड़ने में नजरअंदाजी की जा रही है और इसके लिए बहुत हद तक ज़िम्मेदार है समय के अनुकूल निर्देशित मार्गदर्शन की सख़्त कमी. युवा शक्ति के प्रबल और पहले वेग को अगर नियंत्रण से बाहर रखा जाता है तो इसका ख़ामियाजा भी अनियंत्रित सैलाब की तरह ही हॉग
काल्पनिक जीवन जीने के अंदाज भी निराले हैं, बहुराष्ट्रिए कंपनियों में कार्यरत अधिकतर नौजवान और युवतियाँ देश की राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक व्यवस्था, विधानपालिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, राज्यों और उनकी संस्कृतियों तक से अंजान हैं हालाँकि इनके पास २४ घंटे इंटरनेट और जानकारी हाँसिल करने की सुविधाएँ उपलब्ध हैं. लेकिन फ़ेसबुक, ईमेल और वीकेंड पार्टियों तक सीमित ये युवा अपने ही देश में आप्रवासी भारतीय युवा से अधिक नहीं हैं.
अब एक और तरह के युवा संकाय के बारे में जानने का प्रयास करते हैं जो बी ए पास है, लेकिन बरोज़गार है और संसाधनों से वंचित है और वंचित रखा भी जा रहा है. इस तरह का युवा आप किस भी स्थानीय शहर में किसी भी राजनेता के घर के बाहर पड़ी कुर्सियों पर, गेट पर,  एक नौकरी पाने की लालसा लिए राजनेता से मिलने का इंतजार करते नज़र आ सकते हैं. इस तरह की युवा शक्ति का प्रयोग राजनेता अक्सर चुनावों में भीड़ जुटाने और नारे लगाने के कार्यों में या निजी मुखबिरों में शामिल कर अपने अवैध कार्यों को अंजाम देने में बखूबी इस्तेमाल करते हैं. कुछ को सरकारी शिक्षक, बाबू, क्लर्क आदि की नौकरी मिल जाती है और कुछ को सड़क और शराब के ठेके. अपने राजनेता की गुरुदक्षिणा देने के लिए यह युवा शक्ति  महीनों कार्यालय से गायब रहती है और विभाग की खबर देते हैं, और जो ठेकेदार बने हैं वो कमाई का कुछ हिस्सा राजनेता की पार्टी में चंदा, बाहुबल और समर्थन देकर राजनेता का आशीर्वाद हाँसिल करने की कवायद में व्यस्त रहते हैं,  इस तरह की युवा शक्ति के लिए यह सोचना भी एक कल्पना है कि देश निर्माण और समाज निर्माण जैसे शब्द हिन्दी शब्दावली में कहीं पर अंकित हैं. इस तरह के युवा की सारी सोच केवल एक रोज़गार हाँसिल करने तक सीमित रहती है और बदलाव या सुधार जैसी किसी भी देशव्यापी मुहिम को एक सनक करार देने जैसी पहली प्रतिक्रिया और आलोचना का केंद्र इनके मुख मंडल से आरंभ होता है. राजनीति में दिलचस्पी रखने वाली यह युवा शक्ति इस बात तक से अंजान पाई जाती है कि भारत का संविधान अपने नागरिकों को कौन कौन से मौलिक अधिकार देता है ?
लेकिन एक युवा वर्ग ऐसा भी है जो सजग है, शारीरिक मानसिक और बौधिक विकास से संतुलित है, भारत के ऐतिहासिक और वर्तमान राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक इतिहास से परिचित है, इनमे हुए बदलाव की जानकारी से अवगत है, भारत की व्यापारिक, खनिज और तकनीकी क्षमताओं के बीच प्रगति में बाधक तत्वों का विश्लेषण करने में समर्थ है, सुधार के लिए चर्चा और भागीदारी करने में संकोच नही करता है, देश और दुनिया से अवगत है, सकारात्मक आलोचना और सर्वहित के लिए सुझाव देता है और हर पल अपने किए हुए प्रयासों पर यकीन रखता है क्योंकि – “वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान, हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है”

सरकारी आँकड़ों की माने तो भारत की कुल जनसंख्या का ५० फ़ीसीदी हिस्सा २५ वर्ष से कम आयु वर्ग का है और ६५ फ़ीसीदी जनसंख्या ३५ वर्ष से कम आयु वर्ग की है, यानी हम हमारे इस देश को युवा भारत कहे तो कुछ भी ग़लत नही है. अब गंभीर सवाल यह है कि हमारी युवा शक्ति की सही और संपूर्ण तस्वीर क्या है, कैसी होनी चाहिए और ख़ासतौर से भारत जैसे विकासशील देश में इसके क्या मायने हैं ? एक युवा  को घर से लेकर परिवार, समुदाय से लेकर समाज और क्षेत्र से लेकर देश तक अपनी प्रगति विकास और निर्माण की अहम ज़िम्मेदारी की बागडोर देना चाहता है और यह स्वाभाविक भी है क्योंकि युवा अवस्था एक परिपक्व व्यक्तित्व के पूर्ण होने का प्रतिबिंब है, और व्यक्ति और रास्ट्र के निर्माण क्रम में महत्वपूर्ण पड़ाव.

एक और बात, सफल और शक्तिशाली युवा व्यक्तित्व के निर्माण कार्य में विभिन्न किरदार अलग अलग भूमिका निभाते हैं, जैसे शिक्षण संस्थाएँ, सामाजिक रूप रेखा, धर्म संस्कृति कला और बाहरी देश दुनिया में होने वाली गतिविधियों से परिचय.परिपक्वता से मेरा अभिप्राय है एक ऐसी युवा शक्ति जो शारीरिक और मानसिक स्तर पर संतुलित भी है और सर्जनात्मक भी.

लेकिन वर्तमान भारतीय युवा शक्ति की तस्वीर कुछ और ही बयान करती है, और गिने चुने कुछ सफल नाम जिनका परिचय मीडीया या अख़बारों के माध्यम से किया जाता है उनका किसी भी प्रकार से पूरी युवा शक्ति का प्रतिनिधित्व करने पर थोपा जाना असंगत है, आख़िरकार सवाल भारत के ६५ फ़ीसीदी युवा वर्ग की छवि से जुड़ा है ना कि  देश के ११ क्रिकेट खेलते खिलाड़ियों के परिचित नामों से, ना ही बोलीवूड और टॅलेंट हंट में रोजाना चित परिचित अंदाज में  थिरकते कलाकारों से, और ना ही हर शहर के हर सेक्टर के बाज़ारों में ५-६ का समूह बनाकर खड़े वयस्क और भ्रमित नौजवानों से जो अख़बार भी खोलते हैं तो सिर्फ़ रंगीन पेज पर आए फिल्मी कलाकारों के लिए. यह मेरी अतिवादी सोच नही है लेकिन लगता है कि  इस उभरते युवा वर्ग को जानबूझकर किसी सर्जनात्मक प्रक्रिया से जोड़ने में नजरअंदाजी की जा रही है और इसके लिए बहुत हद तक ज़िम्मेदार है समय के अनुकूल निर्देशित मार्गदर्शन की सख़्त कमी. युवा शक्ति के प्रबल और पहले वेग को अगर नियंत्रण से बाहर रखा जाता है तो इसका ख़ामियाजा भी अनियंत्रित सैलाब की तरह ही होगा I

काल्पनिक जीवन जीने के अंदाज भी निराले हैं, बहुराष्ट्रिए कंपनियों में कार्यरत अधिकतर नौजवान और युवतियाँ देश की राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक व्यवस्था, विधानपालिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, राज्यों और उनकी संस्कृतियों तक से अंजान हैं हालाँकि इनके पास २४ घंटे इंटरनेट और जानकारी हाँसिल करने की सुविधाएँ उपलब्ध हैं. लेकिन फ़ेसबुक, ईमेल और वीकेंड पार्टियों तक सीमित ये युवा अपने ही देश में आप्रवासी भारतीय युवा से अधिक नहीं हैं.

अब एक और तरह के युवा संकाय के बारे में जानने का प्रयास करते हैं जो बी ए पास है, लेकिन बरोज़गार है और संसाधनों से वंचित है और वंचित रखा भी जा रहा है. इस तरह का युवा आप किस भी स्थानीय शहर में किसी भी राजनेता के घर के बाहर पड़ी कुर्सियों पर, गेट पर,  एक नौकरी पाने की लालसा लिए राजनेता से मिलने का इंतजार करते नज़र आ सकते हैं. इस तरह की युवा शक्ति का प्रयोग राजनेता अक्सर चुनावों में भीड़ जुटाने और नारे लगाने के कार्यों में या निजी मुखबिरों में शामिल कर अपने अवैध कार्यों को अंजाम देने में बखूबी इस्तेमाल करते हैं. कुछ को सरकारी शिक्षक, बाबू, क्लर्क आदि की नौकरी मिल जाती है और कुछ को सड़क और शराब के ठेके. अपने राजनेता की गुरुदक्षिणा देने के लिए यह युवा शक्ति  महीनों कार्यालय से गायब रहती है और विभाग की खबर देते हैं, और जो ठेकेदार बने हैं वो कमाई का कुछ हिस्सा राजनेता की पार्टी में चंदा, बाहुबल और समर्थन देकर राजनेता का आशीर्वाद हाँसिल करने की कवायद में व्यस्त रहते हैं,  इस तरह की युवा शक्ति के लिए यह सोचना भी एक कल्पना है कि देश निर्माण और समाज निर्माण जैसे शब्द हिन्दी शब्दावली में कहीं पर अंकित हैं. इस तरह के युवा की सारी सोच केवल एक रोज़गार हाँसिल करने तक सीमित रहती है और बदलाव या सुधार जैसी किसी भी देशव्यापी मुहिम को एक सनक करार देने जैसी पहली प्रतिक्रिया और आलोचना का केंद्र इनके मुख मंडल से आरंभ होता है. राजनीति में दिलचस्पी रखने वाली यह युवा शक्ति इस बात तक से अंजान पाई जाती है कि भारत का संविधान अपने नागरिकों को कौन कौन से मौलिक अधिकार देता है ?

लेकिन एक युवा वर्ग ऐसा भी है जो सजग है, शारीरिक मानसिक और बौधिक विकास से संतुलित है, भारत के ऐतिहासिक और वर्तमान राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक इतिहास से परिचित है, इनमे हुए बदलाव की जानकारी से अवगत है, भारत की व्यापारिक, खनिज और तकनीकी क्षमताओं के बीच प्रगति में बाधक तत्वों का विश्लेषण करने में समर्थ है, सुधार के लिए चर्चा और भागीदारी करने में संकोच नही करता है, देश और दुनिया से अवगत है, सकारात्मक आलोचना और सर्वहित के लिए सुझाव देता है और हर पल अपने किए हुए प्रयासों पर यकीन रखता है क्योंकि – “वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान, हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है”

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